Author: Mrs Swapna Tiwari, Educator
विस्तृत विश्व ,भाषाएं अगणित
स्वर भी सबके अपने हैं,
कानों में रस माधुरी घोले
तो समझो वह हिंदी है।
सुगम सरल है, सौम्य सहज भी
उच्चारण शुद्धि लाती है,
जिव्हा पर विद्युत सी डोले
तो समझो वह हिंदी है।
बुद्धिजीवियों की कोई भाषा
कोई पठन-पाठन ,अध्यापन की,
जन की बातें ,जन से बोले
तो समझो वह हिंदी है।
सौंदर्य की भाषा, ज्ञान की भाषा
लावण्यमई कहलाती है
मां की ममता याद दिलाए
तो समझो वह हिंदी है।
स्वप्ना तिवारी