श्रीमती अलका जैन, Educator
प्रत्येक कार्य ईमानदारी से करें
सुना था अपने पिता से
कई बार
देखा था ऐसा करते उन्हें
पढ़ा था कई किताबों में
और अपनाया अपने जीवन में
पर व्यावसायिक मानदंडों के बीच
न मिला इसका कभी कोई ‘पुरस्कार’
कभी-कभी कुछ कमज़ोर क्षणों में
अपने भरोसे को हिलता पाया
‘बटरिंग’ के नित नए रूप देख
मेरा भी जी ललचाया
पर अंतरात्मा ने दी फटकार
और इस फटकार को लिया मैंने स्वीकार
एक कहानी हमेशा मेरी यादों का बनी हिस्सा
सुनाना चाहूंगी बार-बार उसी का किस्सा
था एक ‘कारपेंटर’
करता था सुन्दर कारीगरी
तन, मन और रचनात्मकता के साथ
बनाता था सुन्दर, मजबूत नींव के मकान
मालिक मानते थे उसका बड़ा एहसान
वक्त के साथ-साथ
एहसास हुआ उसे की
अब लगने लगी कुछ थकान
करना चाहिए ईश्वर की भक्ति
“श्रम ही पूजा है”
इस बात में अब नहीं रही शक्ति
पहुंचा मालिक के पास
पूछा मालिक ने
हमेशा प्रसन्नचित्त रहने वाला भक्त क्यों है ‘उदास’
बताया कारण
मालिक भी चाहता था
अपने प्रिय बन्दे का रखना मान
इसलिए मान ली बात पर ‘सशर्त’
बनाना पड़ेगा एक और मकान
तभी ले पाओगे विराम
अनिच्छा और अनमने भाव से
बनाया एक कमज़ोर नींव का
अच्छे ‘एलिवेशन’ वाला मकान
पूरा बनने पर गया मालिक के पास
प्रसन्नचित्त मालिक ने
निश्छल मुस्कान के साथ कहा
जीवन में बनाए तुमने हज़ारों
सुन्दर, मज़बूत, नक्काशीदार मकान
उसी का है ये ‘पुरस्कार’
रहो आनंद से इसमें
और बिताओ शेष जीवन
‘कारपेंटर’ को हुए आत्मग्लानि
जीवन के अंत समय में की
अपनी ही हानि
अपनी ही हानि |
इसलिए मित्रों, कभी ईमानदारी न छोड़ो,
कभी मेहनत से मुंह न मोड़ो ||