CBSE Affiliation No. 1031254 Mandatory Public DisclosureJhalaria Campus North Campus
CBSE Affiliation No. 1031254

जमाल और जेम्स

मनस्व नंदेश्वर, Class X C

जमाल अपना नाम, अपनी संस्कृति और अपनी भाषा, सब अपने नए नाम ‘जेम्स’ में गँवा चूका था | न्यू यॉर्क की सड़कों पर, भीड़ के साथ चलते हुए भी वह अकेलापन महसूस कर रहा था | उसकी ज़िन्दगी में कुछ तो कमी थी | पैसा तो उसकी चाल, ढाल, स्वभाव, सब में झलकता था | मालूम हुआ कि कमी थी तो माँ के प्यार की |
“माँ अकेले गाँव में कैसे रहती होगी?” यह सोचकर उसका कलेजा भर आया | झट-पट फोन निकालकर माँ की न्यू यॉर्क की टिकट्स बुक कर ली |
दो हफ़्ते बीत गए और माँ अपनी पेटी थामे एअरपोर्ट पर जमाल का इंतज़ार कर रही थी | पहली बार में न तो जमाल माँ को पहचान पाया और न माँ जमाल को | वह तो एक माँ की ममता ही थी जो अपने बेटे को उसकी आँखों में ढूंढ सकी |
घर पहुंचकर ‘जेम्स’ ने अपनी पत्नी ‘जेनिफर’ से उसे मिलाया | जेनिफर के माता-पिता भी थे तो दोनों भारतीय, पर भारतीयता का एक भी कण जेनिफर में नहीं झलकता था |
घर की स्थिति कुछ बिगड़ सी गयी थी | पुराने ख़यालात और मॉडर्न सोच के बीच आए दिन तकरार होने लगी थी | जमाल अपने अतीत की खुशियों को वर्तमान के प्यार के साथ नहीं तौल सकता था |
माँ ने आखिर में हाथ खड़े कर लिए और वापस भारत लौटने का मन बना लिया |
जाते-जाते एक लिफ़ाफ़ा छोड़ गयी – जान-बूझकर या अनजाने में, यह जमाल न जान सका | लिफ़ाफ़ा खोला तो पाया की उसमे उसकी बचपन की तस्वीरें हैं | कैसे वह मिट्टी में खेलता था, और कैसे अब वह सूट-बूट पहना फिरंगी बन गया, उसे आश्चर्य हुआ |
उसे अहसास हुआ की असलियत में वह एक भारतीय माँ का प्यार था, जिसकी उसके ह्रदय में कमी थी |

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