Author: अवि श्रीवास्तव, कक्षा X B
हाँ वतनपरस्त हूँ मैं, क्योंकि मैंने धर्म की लकीर से देश को नहीं बाँटा,
राम अल्लाह की दुहाई देकर जिस्म को नहीं काटा,
देश मेरा कभी न थमने वाला है दरिया,
यह तो मुहब्बत और प्यार का है ज़रिया |
हाँ वतनपरस्त हूँ मैं, क्योंकि वतनपरस्ती को धर्म माना,
अपने हमवतन को अपना कुनबा माना,
न मेरे मज़हब का कोई रंग,
रहे तिरंगा ही मेरे दिल के संग |
हाँ वतनपरस्त हूँ मैं, क्योंकि बाँटी मैंने लोगों में मुहब्बत,
नहीं की धर्म के नाम पर बग़ावत,
नहीं कोई मुक़द्दस क़िताब ,
संविधान की ही करूँ पूजा-आदाब |
हाँ वतनपरस्त हूँ मैं, क्योंकि मुल्क के लिए एक ही चाहत,
मिले मुल्क को मज़हबी जातिवाद से राहत,
फहराऊँ दुनिया पर हिन्दुस्तान का परचम,
याद रखे दुनिया हिन्दुस्तानियों को हरदम !
क्योंकि हाँ वतनपरस्त हूँ मैं
हाँ वतनपरस्त हूँ मैं !