राम और राज दोनों ही अच्छे दोस्त थे। दोनों हर काम एकसाथ करते थे। साथ ही घूमते थे, साथ ही खेलते थे और साथ ही पढाई भी करते थे। पर राज हमेशा सारे काम अधूरे ही करता था। जबकि राम अपने कार्य में बड़ा तत्पर था। उसका हर काम साफ़ सुथरा था। कभी कभी लगता था की दोनों दोस्त एक दूसरे से एकदम विपरीत हैं। पर थे दोनों सच्चे दोस्त।
आठवी की अर्ध-वार्षिक परीक्षा में राज और राम दोनों ही अच्छे अंक नहीं ला पाये। कोई समझ नहीं पाया की राम के अंक कैसे कम हो गए। वह तो हर साल परीक्षा में अव्वल आता था।
राम हार मानने वाला नहीं था। उसने ठान लिया था की वह वार्षिक परीक्षा में अच्छा करेगा और अपने दोस्त से भी कराएगा। अपने से ज़्यादा उसे अपने दोस्त की चिंता हो रही थी।
राम ने ये बात राज से भी कही। पर उसने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। किन्तु राम एक सच्चा दोस्त था। उसने राज को समझाया। उसकी हिम्मत बढ़ाई। उसे जताया की वह भी राज का साथ देगा। अंत में अपने दोस्त के समझाने पर राज ने भी कोशिश करने की ठान ली। उसी दिन से दोनों दोस्त मेहनत में जुट गए। राम पूर्णावृत्ति का महत्व जानता था। उसमे भी उसने राज का साथ दिया।
आज वार्षिक परीक्षा का फल मिलने वाला था। दोनों दोस्त अपने माता पिता के साथ परीक्षाफल लेने गये. उनकी अध्यापिका ने उनसे कहा की राम और राज ने तो जैसे कोई जादू कर दिया था। वे दोनों ही परीक्षा में अव्वल आये थे।
दोनों दोस्त और उनके माता पिता, सभी खुश हुए। राम की तरह राज भी समझ चुका था की कोशिश करने से मनुष्य कुछ भी हासिल कर सकता है।