श्रुति बियाणी, Class IX D
धरती हमारी माता है,
इसको तुम प्रणाम करो,
बनी रहे इसकी सुन्दरता,
ऐसा तुम कुछ काम करो |
कहीं पेड़ हैं तो कहीं झरने,
परन्तु लगे हैं अब ये मरने |
मनुष्य ने जबसे विकास किया,
धरा को सिर्फ नुक्सान दिया |
नदी में जब मैल है पड़ता,
शुद्ध जल के लिए हमें लड़ना पड़ता |
पेड़ों को जब कोई काटता,
मानो विनाश को वह बुलाता |
मनुष्य देखता अपना स्वार्थ,
यही है जीवन का कटु यथार्थ |
धरती हमें है बहुत कुछ देती,
बदले में सिर्फ यही मांगती,
रोती है ये हमारी माता,
सिर्फ पुकारती एक सुरक्षा छाता |
यदि धरती नहीं रहेगी,
ये सारी जन-जातियां कैसे बचेंगी?
हम युवाओं को कुछ करना होगा,
इसे बचाने का प्रण करना होगा |
एक पौधा, हर साल,
तभी हटेगा यविनाशकाल,
हमें धरती को बचाना होगा,
इसे नया जीवन प्रदान करना होगा |
धरती बचाओ, विनाश भागो ||