श्रीमती अल्का जैन, Educator
एक दिन तन्हा बैठे हुए कुछ विचारमग्न थी
की नज़र पड़ी मेरी
बग़ीचे के रंग-बिरंगे पौधों पर, वृक्षों पर
फूलों पर, फलों पर
मैंने देखा की सबके सब दुखी
मुरझाए हुए, उदास
किसी आस में की
अचानक हुआ प्रकाश
जागी चेतना
और उनके दर्द को जानना चाहा
पुछा ‘ओक’ वृक्ष से
क्या है तुम्हारे दुःख का कारण
बोला
दुखी हूँ ‘देवदार’ से
क्यों नहीं बनाया उतना लम्बा मुझे
किन्तु आश्चर्य !
जब मै मिली देवदार से
वो भी मुरझाया हुआ
कंधे झुके हुए, कुछ थका हुआ …
उसके दुःख का कारण था
की मै नहीं दे पाता फल
अंगूर की बेलों के तरह
विश्वास था की अंगूर की बेल
तो होगी खुश
गई उसके पास
पाया वो भी उदास
पुछा कारण –
बोली –
इश्वर ने नहीं दिया गुलाब की तरह खिलने का गुण
अब बारी थी ‘गुलाब’ की
आश्वस्त हुई मै
पहुंची गुलाब के पास
बोला –
मै दुखी हूँ इश्वर के इस अन्याय से
की उसने
खुशबू दी, रंग दिए, पर साथ में दे दिए
काँटों रुपी अवगुण
अचानक मेरी नज़र पड़ी
एक वृक्ष पर
सब तरह से खुश, प्रसन्नताजगी से भरा हुआ
जानना चाहा उसकी ख़ुशी का कारण
बोला –
बात ये है
की कुञ्ज के सभी पौधे, पुष्प, वृक्ष
नहीं जानते अपनी खूबियाँ
देखते हैं दूसरों के गुण
दूर नहीं करते अपने अवगुण
वे नहीं जानते इस ‘सत्य’ को
की
इश्वर का रोपा हुआ हर ‘पौधा’ है
अपने आप में विशिष्ट
सबका अपना निजी सौंदर्य ही
बनाता है कुञ्ज को सुन्दर
सुगन्धित और खुशबूदार ||