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बड़ों का साया मेरु के सामान है

आरुषि जैन, कक्षा ९वीं B द्वारा लिखा एक पत्र |

ऍफ़ १३४

एम्. आई. जी.

इंदौर
१६ जून २०१४
प्रिय सिद्धार्थ
नमस्ते
मै यहाँ कुशल मंगल हूँ और ईश्वर से आशा करती हूँ की तुम्हारे घर भी सब कुशल मंगल होगा | मेरी अभी छुट्टियाँ चल रही है | पर इस बार मैं तुम्हारे घर नहीं आ पाऊँगी क्योंकि मुझे कुछ ज़रूरी काम से विदेश जाना है |
तुमने इतने दिनों से पत्र नहीं लिखा तो मैंने सोचा मै ही पूछ लूं | आजकल तो तुम्हारे पास इतना भी समय नहीं की तुम अपनी बड़ी बहन को पत्र लिखो | जब पिछली बार तुम मेरे घर आये थे तुमने दादा-दादी जी की साथ बैठकर पांच मिनिट भी बात नहीं की थी | दिन-पर-दिन नयी पीढ़ी में एक परिवर्तन देख रही हूँ | बच्चे बड़ों के साए को  अपनी स्वतंत्रता में एक बाधा समझने लगे हैं | जबकि बड़ों का साया किसी आशीर्वाद से कम नहीं | वह हमें ग़लत रास्ता चुनने से रोकता है और हमें अपने लक्ष्य तक पहुँचने का रास्ता निर्धारित करने में मदद करता है|
बड़ों का साया हमें आत्मविश्वासी बनाता है | वह हमें एक सहारा ही नहीं देता बल्कि एक सुरक्षा भी देता है | हम अपने बड़ों के साथ हमारे मन में चल रही बातें बता सकते हैं | अपनी परेशानियां बताकर हल्का लगता है | नहीं तो हम अन्दर ही अन्दर घुट-घुटकर जियेंगे |
अगली बार जब तुम मेरे घर आओगे तो आशा करती हूँ की तुम बड़ों के साथ बैठकर उनसे हंसी-मज़ाक करोगे और मेरी बात को ध्यान से सुनकर समझकर उसपर अमल करोगे | अगर तुम्हे तुम्हारे कोई भी मित्र ग़लत रास्ते पर चलते हुए दिखें तो तुम उन्हें भी यह बात ज़रूर समझाना | इससे तुम्हारा भी भला होगा और उस मित्र का भी |
अन्नू को मेर प्यार और मौसी-मौसाजी को नमस्ते |
तुम्हारी बड़ी बहन
आरुषि

 

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