दिति रावत, कक्षा IX E
आजकल जहाँ देखो वहां धुआं, कूड़ा,-कचरा, गन्दगी दिखाई देती है | पृथ्वी का मानो रूप-रंग ही बदल गया है | फेक्टरियो, वाहनों आदि से निकलने वाले धुएं ने तो हवा को अस्वच्छता का रास्ता दिखाया है | धरती के प्यारे पेड़ों को काटकर, आधुनिकता की ओर अग्रसर मनुष्य ने, कारोबारों और घरों को बनाया है | क्या मानव दानव नहीं बन गया है? क्या वह अपनी माँ से प्रेम नहीं करता, जो उसे इतना दर्द दे रहा है?
मनुष्य कूड़ा-कचरा फैंकने में तो सबसे आगे है, परन्तु जब साफ़-सफाई की बात आए तो वह दूसरों को दोषी ठहराता है | क्या देश की सफाई और धरती को प्रदूषण मुक्त करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ सफ़ाई-कर्मचारियों और कुछ जागरूक नागरिकों की ही है?
नहीं! भूमि की, धरती माँ की सफाई में तो उसके सभी बच्चों का सामान योगदान होना चाहिए | प्रदूषण से, धुएं से सिर्फ़ जाने जाती है, परन्तु क्या वह उत्पादन उन जानों से ज़्यादा कीमती है? क्या हम इतने निर्दयी हो गए हैं?
स्वच्छता तो देवत्व के सामान है | धरती हमारी माँ है | हमें अपनी माँ को बचाने हेतु हर संभव कोशिश करनी होगी | इको-फ्रेंडली होना होगा और अधिक मात्रा में पेड़-पौधों को लगाना होगा | आधुनिक सभ्यता में जागरुकता फैलानी होगी और घने वनों को काटना कम और अगर संभव हो तो बंद करना होगा |
इस कृत्रिम दुनिया को पीछे छोड़कर एक नयी, स्वच्छ, प्रदूषण-मुक्त विश्व की स्थापना करनी होगी | मनुष्यों की ही नहीं, जानवरों को भी जानें बचानी होगी | प्रदूषण के खिलाफ कुछ करना होगा, नहीं तो हमारा अस्तित्व संकट में आ जाएगा |
सभी पाठकों से निवेदन है की कुछ सुख-साधनों को त्यागकर, कुछ प्रयास कर हम एक ऐसा पर्यावरण बना सकते हैं, जिसमे प्रदूषण जैसा कुछ न हो | हवा और पानी एकदम स्वच्छ हो और आस-पास हरियाली हो | तभी सब स्वस्थ रहेंगे और सुखी रहेंगे |
“धरती करे पुकार, मुझे बचा लो मेरे यार |”