CBSE Affiliation No. 1030239 Jhalaria Campus North Campus
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तिरंगे सा मस्तक

अबीर श्रीवास्तव, Class X D

भारत की गिनती आज विकासोन्मुख देशों में होती है | परन्तु एक कटु सत्य यह भी है भारत का एक वर्ग है जो ऐसे गाँव, बस्तियों में या शहरों की चालों या गलियों में बसता है जहाँ जीवन प्रगतिशीलता से आज भी कोसो दूर है |
ऐसे ही भारत के किसी अनजान, अविकसित हिस्से में प्रेम नामक बीज में देशभक्ति के अंकुर धीमे-धीमे फूट रहे थे | तेरह वर्ष की छोटी से आयु में प्रेम को विकास और पश्चिमीकरण में अंतर समझ आ गया था | वह किसी भी अन्य भारतवासी की भान्ति देशप्रेम की मात्र बातें नहीं करता था, बल्कि देश के प्रति उसके ह्रदय में जूनून था |
धन के अभाव में, टपरियों पर चाय बेचकर उसने अपनी विद्यालयीन शिक्षा प्राप्त कर ली | तत्पश्चात, छात्रवृत्ति के बल पर कॉलेज में भी दाखिला ले लिया | हर क्षण अमीर बिगड़े छात्रों के मध्य वह अपनी फटी जीन्स और टूटी सायकल को देखता तो प्रेम के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान आ जाती |
छः वर्षों के संघर्ष के पश्चात् उसे इंग्लैंड से नौकरी का प्रस्ताव आया | वह देश छोड़ना तो नहीं चाहता था पर अपने माता-पिता का नाम रोशन करने के लिए वह चला गया |
अंग्रेज उसके संस्कारों और कुशलता को देख प्रसन्न हुए | प्रेम के लिए विकास के सारे मार्ग खुल रहे थे | परन्तु उनकी एक शर्त को प्रेम ने सिरे से नकार दिया |
अंग्रेज चाहते थे की तिरंगे के स्थान पर प्रेम अपने केबिन में विदेशी झंडा लगाये |

प्रेम ने कहा, “तिरंगे सा ऊंचा मेरा मस्तक कभी नीचे नहीं हो सकता |”
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